स्व० प्रेमचंद, प्रसाद, निराला और कमला कुमारी .
जिनकी वात्सल्यमयी स्नेहिल आँखों की शीतल छाया में,
बाल सुलभ मन मुस्काया.
धूल झार दोनों हाथों की, रहा देखता चकित.
नयन-क्षितिज पर शुभ्र ज्योति-कलश लेकर,
कैसा सप्तरंग, सह्स्र्रंग, अन्शुजाल लहराया.
मन !
विभोर.ठगा रहा घबड़ाया.
काँटा , कहीं चुभा नहीं.
चोट, कहीं लगी नहीं.
क्यों ? बरबस अंकों में जल भर आया.
जिन विभूतियों की छाप पड़ी गहरी.
जिनकी स्मृति-भार झुकी,
अजस्र तुहिनाश्रु पली, भरी भरी.
लेखनी ! सदा रही सिहरी-सिहरी.
उनके ही पावन श्री चरणों में,
शत-शत बार नमन करती,
कल्पना किसलय की,
यह
तपःपूत अश्रु अभिसिंचित श्रद्धांजलि.
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